एक परिपक्वता की मंशा में जीवन यापन करता मैं,
किसी दिशा की ओर बढता मैं,
हर दिन इसी से गुजरता मैं |
जीवन की आपाधापी में खुद को समझता मैं,
उलझन में तो सारे हैं,
पर उनके आगे बढ़ता मैं |
एक युग का दर्शन होता है,
गतिरोध और विलंभ का साथ संगम होता है,
इस ओर मैं अपनी सीमा को प्रदर्शित करता मैं |