Monday, September 14, 2009

        This is one of the best poems by Harivansh Rai Bachan
 
 क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
 अंगणित उन्मादों के क्षण हैं,
 अंगणित अवसादों के क्षण हैं,
 रजनी की सूनी घडियों को किन-किन से आबाद करूं मैं! 
               क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

याद सुखों की आंसू लाती,
 दुख की, दिल भारी कर जाती,

 दोष किसे दूं जब अपने से अपनए दिन बर्बाद करूं मैं!
             क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

 दोनों करके पछताता हूं,
 सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,

 सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आज़ाद करूं मैं!
                  क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
   nd this is the enhanced version written by me...
 
  कोशिश कर के पछताता  हू ,
  छोड़ नहीं पर मैं पाता हू ,
   
 अपनी दुनिया का खुद भला कैसे मैं त्याग करू मैं  |
  क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
  
 यादों के अवशेष हैं यह भी ,
  मुझमे अब भी शेष हैं यह भी ,
  
 खुद से छल दिन रात करू मैं ,
  क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!


  अभिव्यक्ति का स्वरुप हैं भाव ,
   आज इन्ही पर थमे  हैं पाँव |
  
 भावविहीन होते मन को अब कैसे शांत करू मैं ,
  क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!

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